शनिवार, 22 सितंबर 2012

फूटकर रोया बहुत



जिंदगी  अरमानो  की किताब  बना ली  थी  उसने 
और  आज  पढने  बैठा  तो  फूटकर  रोया  बहुत …
मिटटी  के  ढेलो  से  लेकर  कागज  की   कश्ती  तक 
दिन  के  झमेलों  से  लेकर  रात  की  मस्ती  तक 
सब  कुछ  छोड़ा  था  उसने  उसको  पाने  के  लिए 
और  आज  वो  भी  न  मिली  तो  फूटकर  रोया  बहुत …
यूँ  तो  उसे  अच्छा  न  लगा  शहर   मेरा 
मेरी  बदनाम  गलियों  से दूर  तक  कोई  नाता  न  था 
उसको  बदनामी  मिली  जब  अपने  ही  घर  में 
आज  मेरी  डेहरी पे  आया   तो  फूटकर  रोया  बहुत …
तमाम  जिंदगी  उसने  रोकर  गुजार  दी 
सोचा  था  की  सब  इकठे  ही  हसेगा 
पर  इस  कदर  वो  आदतन  मजबूर  हो  गया 
की  आज  हसने  चला  तो  फूटकर  रोया  बहुत 
आखिरी  पन्ने  पे  उसे  राख  मिल  गयी 
जिंदगी  के  पन्नो  पे  अपनी  ही  लाश  मिल  गयी 
बंद  कर  दी  किताब  मूँद  ली  आखें 
पर  था  सोया  नहीं …आज  बहुत  दिनों  के  बाद 
 वो  फूटकर  रोया  नहीं …….
-प्रीती - 


5 टिप्‍पणियां:

Vinay Sharma ने कहा…

तमाम जिंदगी उसने रोकर गुजार दी
सोचा था की सब इकठे ही हसेगा
पर इस कदर वो आदतन मजबूर हो गया
की आज हसने चला तो फूटकर रोया बहुत.....

सुंदर शब्द संयोजन, बेहतरीन...
बधाई...

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

dhnyawaad sir , meri khusnaseebi hai k aapka comment mila hai mujhe...meri is rachna par...saadhuwaad.

Unknown ने कहा…

bahot hi achi rachna Di...

Dr. Preeti Dixit ने कहा…

thank you....dear......

omiyk ने कहा…

एक एक बार सारी रचनाएँ पढ़ी और बहुत आनंद आया॰ बहुत अच्छा लिख रही हैं, सरल भाषा, सुंदर शब्द संयोजन, सहज भाव, कल्पनाशीलता, सब मिल कर प्रस्तुति सुंदर बन जाती है, मेरी ढेरों शुभकामनायें॰